Kashmir
कश्मीर सदियों पहले जब थी भारत माता अखण्ड, भुवन भास्कर का मंदिर था मार्तंड , ललितादित्य राजा का गौरव प्रचंड, शिव और शिवा रहते कैलाश की द्रोनी पर, भगवान विष्णु का शेष शयन है झीलों में, श्रषि और मुनी पर्वत पर ध्यान लागाते हैं, कुछ कंद मूल कश्मीरी फल वे खाते हैं, दिन रात निरंतर राम नाम धुन गाते हैं। भुवन भास्कर को नित अर्घ्य चढ़ाया जाता था, धरती का तो जन्नत कश्मीर कहलाता था। भारत माता का शीष नयण का था तारा , ऋषि कश्यप और कपिल को प्राणों से प्यारा, फिर आज विदेशी आक्रांता से क्यों हारा ? क्या इन प्रश्नों पर कभी चिंतन हम करते हैं? अपने निज स्वार्थ को राष्ट् पर वरते हैं ? क्यों युगों युगों से हम सनातनी मरते हैं? इन यक्ष प्रश्न का उत्तर अब गढ़ना होगा। समता ममता और राष्ट्र प्रेम पढ़ना होगा , प्रण करो कि भारत का शीश नहीं कटने देंगे, सम्मान तिरंगे का न कभी हटने देंगे, दस बार बंट चुके और नहीं बंटने देंगे। जिसने फैलाया ज्ञान चतुर्दिक घाटी में, गूंजे पुराण और वेद तक्षशिला वाटी में, क्या इतनी ताकत थी म्लेच्छों की लाठी में ? जो बही रक्त की नदी सिंधु की घाटी में, डूबा गौरव प्राचीन चिनाव की धारो