Varna Vyawastha...

श्री कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है कि....
                                                        "चातुर्वर्न्यम  मया श्रीस्ट्वा गुण कर्म विभागसः"
अर्थात ...मैंने चार वर्णों की रचना मनुष्य के गुण,कर्म एवं उनके संस्कारों के आधार पर हीं किया है | कुछ लोग ऋग्वेद के  पुरुषसूक्त के  अनुसार वर्णों कि उत्पत्ति ब्रम्हा के मुख से ब्राह्मन , भुजा से क्षत्रिय ,पेट से वैश्य तथा जंघा से सूद्र  की  उत्पत्ति बतलाते हैं | परन्तु मेरे विचार से यह सत्य कम तथा दंत कथा या बोध कथा ज्यादा दीखता है ,क्योंकि जैविक दृष्टी से ऐसा होना कठिन ही नहीं, असंभव है |
                                                                                                                     तत्कालीन समाज में न तो जगह -जगह इतने तकनीकी  केंद्र थे और न ही औद्योगिक प्रशिक्षण  केंद्र थे ,लोगों का जीवन सरल और कृषि प्रधान था | न तो संगठित सरकार थी और न ही यातायात के लिए विकसित साधन थे ,इसलिए लोगों को चार वर्णों में बांटकर श्रम विभाजन एवं विसिस्तीकरण के सिद्धांत पर समाज का सुचारू रूप से चलाने में वर्ण व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान था |
                                  दुर्भाग्यवश  वर्ण व्यवस्था का रूप कालांतर में जाति  व्यवथा के रूप में परिणत हो गया |यह जाति व्यवस्था बाद में छुआछुत ,सामाजिक विभेदीकरण ,वैमनस्य में बदल गया ,इसके चलते भारतीय समाज कई भागों  में बट गया जिससे विदेशी आक्रान्ता हमारे देश पर एक हजार वर्षों तक शासन  करने में  सफल रहा |
                         अतः हम सबको जाति व्यवस्था को समाप्त कर देश की  एकता एवं अखंडता कि रक्षा के लिए सदैव  प्रयासरत रहना चाहिए तथा स्वदेशी को बढावा देना चाहिए | 
                                                                                                  तो आइये हम संकल्प ले... "एक बनेगे,नेक बनेंगे "||

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ANTIOXIDANT-rich Vegetables

Indigestion(ajeerna)

SIR Dard (head ache)