Krishak ki Subah ( A Farmer's Morning )
सुबह हुई पंछी जागे,
दिनपति निकले दिश पूरब से |
तारे डूबे,रजनी भागी
शशि हर गए अब सूरज से ||
कुछ क्षण में सूरज प्रचंड हुआ
कमल खिले भौरे जगे |
अली मुक्त हुआ
अब नीरज से...
मधुमक्खी निकली
अब छत्तों से...
चली हवा है मंद-मंद
सर-सर की ध्वनि अब पत्तों से
कृषक उठे
लेकर हल बैल
चले जोतने
निज खेतों पर
खेत जोतकर
बीज डालकर
करने लगे
थोडा विश्राम
उसकी गृहनि कुछ ही देर में
लेकर पहुंची थोड़ा जलपान !
करके जलपान कृषक अपने
लेकर हल बैल चले घर ओर
उसके दो बैल भूक के मारे
मौ-मौ कर करते अब शोर !!!
दिया नाद में सानी पानी
बाँधा बैल के गले में डोर...
भूख प्यास के मारे
जब बच्चे करने लगे थे शोर
मिल जुल कर
दोनों प्राणी ने
भोजन बनाकर खिलाने की ठानी
चालवल दाल साग और पानी !!!
खाया खाना पिया पानी ...
संतुस्ट हुआ सारा परिवार !
फिर किया विश्राम
और हो गयी रात ....
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