Barish(The Rain)
सूख रहा था सरी-तड़ाग सब
कही नहीं था पानी |
लुक छिपकर फिर शैल शिखर से
उतर पड़ी वर्षा रानी|
मेघ गगन में कभी गरजते
कभी मतंगज हाथी जैसे,
झूम-झूमकर जल बरसाते
धरा विहंसती प्रियतम जैसे|
कुछ पल में जल की धारों से,
नदियाँ तड़ाग सब उमड़ पड़ी |
मेढ़क की टर-टर तानों पर
अब मोर भी हंस कर नाच पड़ी|
वर्षा रानी के स्वागतार्थ
सब निकल पड़े नर-नारी,
हलधर भी मन में मुदित हुए
फिर फ़ैल गई खुशियाँ सारी ||
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