Dharm(religion)

"धृतिः क्षमा दमो अस्तेयंग सौच्मंद्रियानिग्रह । धी विद्या सत्यम क्रोधो दशकं धर्म लक्षणं ।"


                   अर्थात धैर्य, क्षमा, मन का निग्रह, चोरी नहीं करना, बहार अवं भीतर की शुद्धि, इन्द्रियों का संयम, सात्विक बुद्धि, आध्यात्म विद्या(बुद्धि ), सत्य बोलना, अक्रोध, धर्म के यही दस मूल लक्षण धर्म ग्रंथों में बतलाए गये हैं ।

इस प्रकार ऊपर-युक्त गुणों की रक्षा करके ही मनुष्य, मनुष्यता की रक्षा की जा सकती है...इसलिए कहा गया है-

                     
                   धर्मं एव हटो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
            तस्माद धर्मो न हन्तव्यो माँ नो धर्मो हटो बधीत ।। 
                     

  यानी जो धर्म का नाश करता है, धर्म भी उसका नाश करता है और जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा करता है।
                                  इसे एक सरल उदहारण द्वारा समझा जा सकता है-


गर्मी की चिलचिलाती धुप में किसी के हाथ में छाता है और वह धुप से बच रहा है। कुछ देर बाद यदि वह अपने छाता को तोड़ देता है तो खुद ही वह धुप और गर्मी में झुलस जाएगा । अर्थात धर्म भी मानव के जीवन में छतरी का कार्य करता है ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ANTIOXIDANT-rich Vegetables

Indigestion(ajeerna)

SIR Dard (head ache)