Sarp Aur Garudh.....!!!!
जानामि रे कापुरुष तव प्रभावं ।स्थानं प्रधानं न ही बालम प्रधानं ।।
व्याख्या- एक बार भगवन विष्णु का सन्देश लेकर गुरुड़ जी भगवान् शिव के पास पहुचे । भगवान् शिव समाधी में लीं थे । अतः गरुढ़जी चुप चाप थोड़ी दूर पर बैठ गये । शिवजी के मस्तक पर बैठा हुआ तक्षक नाग गरुढ़जी को देखकर फूफकारने लगे ।गरुढ़ ने सोचा यह तो हमारा भक्ष है(भोजन) है। इसकी जाती मुझे देख कर कांपती अवं पलायन कर जाती है । इसका ऐसा दुश्सहस इसलिए है क्युकी यह शिव के सर पर सवार है जहां कोई हमला नहीं कर सकता है ।
गरुढ़जी बोले - रे कायर! मई तो तेरा प्रभाव जनता हु पर स्थान प्रधान होता है, बल नहीं होता ।
शिक्षा- कभी कभी साधारण मनुष्य बड़े नेतायों अफसरों अवं अन्य बड़े हैसियत वाले लोगों के प्रभाव में अपने को बहोत हे शक्तिशाली और समर्थीयवान मानने लगते हैं और अपने से बड़े हैसियत वालों के साथ भी अच्छा बर्ताव नहीं करते । ऐसे व्यक्ति का साथ जब इन रुत्वेदार लोगों से छुट जाता है तोह समाज में इन्हें फिर कोई नहीं पूछता । इसलिए लोगों को अपने क्षमता और हैसियत का हमेशा ध्यान रखना चाहिए...!!!!!
टिप्पणियाँ