Water Conservation....

   कर बहियाँ बल आपनी 
                          छाड़ी विरानी आस ।
जाके आँगन नदी बहे,
                         सो कत मरे पियास ।।
 ।। बूंद-बूंद से घट भरे ।।               
                                                          ।। हर घट से जीवन चले ।।

    _अर्थात दुसरे की आशा छोड़ कर अपने बहुबल पर विश्वास करना चाहिए । जिसके आँगन में नदी बहती है वह प्यासा कैसे मर सकता है । 

    वर्तमान समय में भारत वासी को कबीर की इस पंक्ति से शिक्षा लेनी चाहिए । इजराएल में प्रति वर्ष औसतन वर्षा 50cm होती है फिर भी वहाँ की सरकार एवं जन भागीदारी के चलते वर्षा जल के संरक्षण का इतना उत्तम प्रबंध किया गया है की कम बारिश उस देश के फसल के विकास एवं अन्य उपयोग में बाधा नहीं बन पाती है । जल-कृषि (water harvesting) तकनीक का बेहतर विकास, झरना सिंचाई (sprinkler system) के बढ़ावा देने के कारण इस्राएल खाद्यान्न एवं अन्य फसलों एवं सब्जियों के उत्पादन में अग्रणी है ।


   दूसरी तरफ भारत में औसतन 140cm -150cm वार्षिक वर्षा होने पर भी फसलों के उत्पादन में पिछड़ा हुआ है । पानी के घरेलु , कृषि , औद्योगिक उपयोग में पर्याप्त पानी नहीं मी पाटा है । 
  
   भारी मात्र में भूमिगत जल के द्वाहन से भूजल ३००-४०० फीट निचे और कहीं कहीं तो १२००-१५०० फीट निचे चला गया है । वाटर लेवल में हर साल गिरावट हो रही है । नदियों का जल , जो १०० वर्ष पहले तक भी पीने के काम में लाया जाता था और गंगा जल तो अमृत ही माना जाता था, अब स्नान के लिए भी उपयुक्त नहीं है । 


   झरने का पानी, जो जंगलों-पहाड़ों से गुजरते हुए बहता था और उसमे तरह-तरह की जड़ी बूटियां (medicinal herbs) का सत्व एवं शिलाओं का खनीज मिला हुआ होता था, स्वाथ्य के लिए बहुत ही उपयुक्त था ।


   आज वनों के भारी विनाश , खनिजों का द्वाहन , पहाड़ों को काट कर सडकों, पुलों, भवनों एवं अन्य उपयोगों के कारण झरने का जल अपनी गुणवत्ता खो चुकी है । 


अतः हमें इजराएल से सीख लेके अपने देश में भी जल-कृषि (rain water harvesting ) को बढ़ावा देना चाहिए ।

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