Vasant Ritu Varnan

सर्दी की बीती ठिठुरन 

पूस की ठंडी रात की सिहरन ।

वायु शीतल अब मंद मंद

शरद ऋतू की हो गयी अंत ।।



लुक चिप कर आम्र की झुरमुट से

 महुए की मस्ताई फूलों  से

झरते पत्तों के शूलों से ।

बगिया के सुन्दर फूलों से

इठलाता आया ऋतू वसंत ।।



महिमा जिसकी कवी गाया है 

मधूमास ऋतू अब छाया है ।

सबकी अलसायी काया है

फूलों पत्तों में छाया  है ।।



ऋतू कान्हा को यह भाया है

महिमा गीता में गाया है

ऋतू कुशुमाकर बतलाया है ।

ऋतुओं में सबसे श्रेष्ठ ऋतू...

वर्णन करके हरसाया है ।।



फूलों की फैली मृदु सुगंध

पुरवाई चली अब मंद-मंद ।

भौरें गाते अब मुक्त छन्द

वीणा-पानी का हुआ अवतरण ।।



वेलेनताइन संत का ज्ञान दिवस

शिव और शिवा  का मिलन दिवस ।

इस ऋतू पर हमसब को है गर्व

और खिल उठे पेड़-पौधे-हर्ब ।। 



कोयल पिपिहा अब गाते हैं

पेड़ के पत्ते झर जाते हैं ।

सब बल्लारियां खिल जाते हैं

अली फूलों से मिल जाते हैं' ।। 



फिर मधुर सुरों में गाते हैं


सबको यह मौसम भाता है

फूलों का सुगंध जब छाता है ।

होली का महोत्सव आता है

सब पर मस्ती चढ़ जाता है ।।






बजते डफली-मांदर-मृदंग

सुनके दर्शक हो गये दंग...!!!!

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