धर्मो विस्वस्य जगतः प्रतिस्था 
लोके धर्मिष्ठं प्रजा उपसर्पन्ति ।
धर्मेण पापं अप्नुदंती 
धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितम
तस्माद धर्मं परमम् वदन्ति ।।

  अर्थात संपूर्ण सचर जगत की प्रतिष्ठा धर्म से है । इस संसार में प्रजा सदैव हे मार्गदर्शन के लिए धर्म प्रिय मनुष्य की ओर निहारा करती है । धर्म से पापों का क्षय होता है तथा धर्म से ही समाज की हर व्यवस्था प्रतिष्ठित होती है । 

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