Jal Hei JEEvaN HaI....!!!

रहिमन पानी राखिये ....
     बिन पानी सब सून ।
पानी गये न ऊबरे ,
     मोती मानुस चून।।


           ये पन्तियाँ जल के महत्व को रेखांकित करती हैं । रहीम कवी इस पंक्ति के माध्यम से कहना चाहते हैं की पानी का संगरक्षण करना चाहिए । सामान्य रूप से इन पंक्तियों में पानी दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है । मनुष्य का पानी (लज्जा, इमानदारी, मानवीयता) यदि ख़त्म हो जाए तो वह मनुष्य के रूप में बिना सिंग और पूछ वाला एक जानवर ही होगा । मोती से यदि पानी(चमक) ख़त्म हो जाए तो उनूप्योगी हो जाता है और उसके मोती होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता । इसीप्रकार चूना(lime) का यदि पानी ख़त्म हो जाए तो वह उपयोग के लायक नहीं रह जाता है । 
        वर्तमान समय में जल का महत्व और भी बढ़ता जा रहा है । यु तो धरती का ७१% भाग जल है तथा शेष २९% स्थल है, फिर भी समुद्री जल पीने के उपयोग में नहीं लाया जा सकता है चुकी वह बहुत ही खारा है । सम्पूर्ण जल का १% उपयोग  लायक है और उस १% का मात्र दसमा भाग पीने लायक है । सम्पूर्ण स्थलीय जल का २५% भूमिगत जल है ।


भूमिगत जल निम्न कारणों से कम तथा दूषित हो रहा है :-


  • वनों का कटाव ।
  • द्रुत गति से उद्योगीकरन ।
  • झींगा मछली का उत्पादन ।
  • सड़कों का फैलाव ।
  • कंगक्रीत के जंगलों का विस्तार (इससे रिचारजिंग में बाधा होती है) ।
  • नॉन -सेप्टिक सेनीतेसन ।
  • सुलभ सौचालय का विस्तार ।
  • सीवरेज एवं ड्रेनेज की कमी |
  • पाश्चात्य जीवन शैली का विकास ।
  • कृषि कार्यों में अंधाधुन्द रासायनिक खाद एवं कीटनाशी का प्रयोग ।
  • खनिजों का एक्सट्रेकसन ।
  • चर्मोद्योग का विकास ।

फसलों, मवेशियों, मतस्य पलानौर वन उत्पादनों के लिए जल की उपलभ्ता तो बुनयादी शर्त है । और तो और ...एक किलो गेहूं के उत्पादन के लिए १५०० लीटर पानी की जरुरत होती है ।


अतः हर मनुष्य को जल बचाने का न केवल प्रयत्न बल्कि प्राण लेना चाहिए ....!!!!




                                                      जल ही जीवन है...!!!!!
            OUR LIFE..OUR WATER..OUR                                                               N                           NECESSITY..!!!


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